भारत में चुनाव: पत्रकारों की सुरक्षा के लिए दिशा-निर्देश

वर्ष 2019 के मार्च महीने में अहमदाबाद के क़रीब एक कारीगर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पार्टी के झंडे और चुनाव अभियान से संबंधित अन्य सामग्रियों को सुखाते हुए. याद रहे कि साल 2019 में 11 अप्रैल से 19 मई के बीच भारत में लोकसभा चुनाव संपन्न हुए थे (एएफपी / सैम पैंथकी).

सीपीजे की इमर्जेंसी रिस्पॉन्स टीम ने चुनावी गतिवीधियों की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों के लिए ऐसे दिशा-निर्देशों की एक सूची तैयार की है जिन्हें ध्यान में रखते हुए वे ख़ुद को सुरक्षित रख सकते हैं. इस सूची में संपादकों, पत्रकारों और फोटो पत्रकारों के लिए ऐसी सूचनाएं दी गई हैं जिनकी रोशनी में वे चुनाव के दिनों की तैयारी कर सकते हैं और सोशल मीडिया पर या फिर शारीरिक और मानसिक तौर पर उत्पीड़न की संभावनाओं को कम कर सकते हैं.

ज़रूरत पड़ने पर पत्रकार सीपीजे के इमरजेंसी रिस्पांस प्रोग्राम से संपर्क कर सकते हैं. वह aiftikhar@cpj.org पर आलिया इफ्तिखार के द्वारा सीपीजे के एशिया प्रोग्राम से भी संपर्क कर सकते हैं. इसके अलावा भारत में सीपीजे के प्रतिनिधि कुणाल मजूमदार से संपर्क करने के लिए kmajumder@cpj.org पर मेल कर सकते हैं.

सीपीजे की जनरलिस्ट सिक्योरिटी गाइड (Journalist Security Guide) में कुछ ऐसी विशेष जानकारियां दी गई हैं जिसकी रोशनी में संभावित खतरों का अंदाजा लगाने और उनसे बचने की तैयारी करने में मदद मिल सकती है. इसके अलावा सीपीजे रिसोर्स सेंटर (CPJ Resource Centre) पर फील्ड पर जाने से पहले की तैयारी से संबंधित अतिरिक्त जानकारियां मुहैया की गई हैं. साथ ही रिसोर्स सेंटर पर पत्रकारों के लिए अनहोनी घटनाओं के बाद मदद हासिल करने के बारे में भी जानकारी मौजूद है.

कोरोनावायरस के प्रकोप का कवरेज

चुनावी गतिविधियों के दौरान, मीडियाकर्मी अक्सर अधिक भीड़-भाड़ वाली जगहों जैसे रैली, चुनाव से संबंधित कार्यक्रम और धरना प्रदर्शन के पास जाकर रिपोर्टिंग करते हैं. इस तरह के स्थान पर, यह संभावित है की शारीरिक दूरी से संबंधित सुरक्षा उपायों का पालन ना हो पाए, जिसकी वजह से वहां पर किसी व्यक्ति के कोविड-19 से प्रभावित होने के की संभावना बढ़ जाती है.

ऐसे व्यक्ति जो कोविड-19 के सनवेदनशील वर्ग में आते हैं या संवेदनशील व्यक्तियों के साथ रहते हैं उन्हें इस तरह की जगह पर रिपोर्टिंग करने से संबंधित आशंकाओं पर विचार विमर्श करना चाहिए और [अपने सहयोगियों के साथ] इस विषय पर चर्चा करनी चाहिए. मीडियाकर्मियों को ऐसे व्यक्तियों से सावधान रहना चाहिए जिन्हें खांसी या छींक आ सकती हो [चाहे जानबूझकर या अचानक]. उन्हें यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि अधिकारियों द्वारा आंसू गैस और/या काली मिर्च स्प्रे का इस्तेमाल किए जाने पर बड़ी मात्रा में वायरस के की बूंदे हवा में फैल सकती हैं. प्रासंगिक व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण अपने साथ ले जाने पर विचार करना चाहिए और यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि आप अपने हाथ नियमित तौर पर अच्छी तरह से धोते रहें, अपने चेहरे को छूने से बचें और अपने उपकरण की सफाई करें.

कोविड-19 और रिपोर्टिंग से संबंधित और अधिक विस्तृत सुरक्षा सलाह के लिए कृपया सीपीजे की सुरक्षा एडवाइज़री को पढ़ें.

एडीटर कौनसी बातों का ख़्याल रखें?

चुनावों के दौरान एडिटर या न्यूज़ रूम में बैठे लोगों की तरफ से रिपोर्टरों को बहुत कम समय में कुछ घटनाओं की रिपोर्टिंग के लिए कहा जा सकता है. इस स्थिति के लिए इस सूची में कुछ ऐसे सवाल और तरीके बताए गए हैं जिनको ध्यान में रखते संभावित खतरों से बचा जा सकता है.

 
 
 
 
 
 
 

संभावित खतरों का अंदाजा लगाने और उससे बचने की तैयारियों के बारे में अधिक जानकारी के लिए सीपीजे रिसोर्स सेंटर पर जाएं.

डिजिटल सुरक्षा: उत्पीड़न से बचने के लिए किन बुनियादी बातों का ध्यान रखें?

रिपोर्टिंग के लिए ग्राउंड पर जाने से पहले बेहतर यह है कि नीचे दिए गए दिशा-निर्देशओं के अनुसार तैयारी कर लें.

डिजिटल सुरक्षा: इंटरनेट पर बॉट को कैसे पहचानें?

चुनावी सरगर्मियों की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों के खिलाफ सोशल मीडिया और दूसरे प्लेटफॉर्म पर मुहिम चलाई जा सकती है. इस तरह की मुहिम के द्वारा पत्रकारों को बदनाम करने की कोशिश की जाती है और उनके कामों से लोगों का भरोसा खत्म करने की चेष्टा की जाती है. इस तरह की मुहिम किसके द्वारा छेड़ी जाती है? और उसका असली जिम्मेदार कौन होता है? इसका पता लगाना बहुत मुश्किल है. इस मुहिम में इंसानों के अलावा कंप्यूटर बॉट (Bot) भी शामिल होते हैं. बॉट ऐसे अकाउंट्स होते हैं जिनको इंसान नहीं बल्कि कंप्यूटर ही चलाता है. बॉट सोशल मीडिया पर इंसानों के तौर तरीकों से सीखता है और फिर वह उन्हीं की तरह ग़लत बयानी और प्रोपेगंडा करता है. इस तरह की स्थिति में इंसानी और बॉट अकाउंट के बीच फर्क करने से पत्रकारों की मदद हो सकती है. उनको कई तरह के अकाउंट से धमकियां दी जाती हैं तो अगर वह बॉट और असली अकाउंट्स के बीच फर्क़ कर लें तो वह इस बात का पता लगा सकते हैं कि धमकी देने वाला कोई असली इंसान है या कोई बॉट अकाउंट है जिसके पीछे सिर्फ एक कंप्यूटर है.

बॉट को पहचानने के लिए क्या करें?

डिजिटल सुरक्षा: इंटरनेट पर होने वाली ट्रोलिंग से कैसे बचें?

चुनाव के दिनों में ऑनलाइन ट्रोलिंग बढ़ सकती है. सीपीजे के संज्ञान में ऐसी कई महिला पत्रकार हैं जिनके साथ भारत में ऑनलाइन ट्रोलिंग और उत्पीड़न किए जाने के मामले सामने आ चुके हैं. इसलिए एक पत्रकार के लिए जरूरी है कि वह अपने अकाउंट्स की जांच परख करते रहें और यह अंदाजा लगाने की कोशिश करते रहें कि कब ऑनलाइन धमकी वास्तविक हमले की शक्ल में बदल सकती है.

इस तरह के खतरों से बचने के लिए:

ऑनलाइन ट्रोलिंग के समय आप क्या करें?

डिजिटल सुरक्षा: अपने ज़रूरी मैटेरियल को कैसे सुरक्षित रखें?

एक पत्रकार के मोबाइल, लैपटॉप, मैकबुक और कैमरे वगैरह में कई महत्वपूर्ण और खुफिया क़िस्म के मैटेरियल होते हैं. इस स्थिति में अगर वह कभी गिरफ्तार हो जाता है तो उसके मोबाइल और अन्य वस्तुओं को ज़ब्त करके उनकी तलाशी ली जा सकती है. इसलिए जरूरी है कि अपने पेशे से जुड़े मैटेरियल को पुलिस या दूसरे लोगों की निगाह से बचाने के लिए इन बातों पर अमल किया जाए.

नीचे बताए गए तरीकों पर अमल करके आप अपनी महत्वपूर्ण सूचनाओं को सुरक्षित रख सकते हैं.

शारीरिक सुरक्षा: रैली या धरना प्रदर्शन के दौरान पत्रकार अपनी सुरक्षा कैसे करें?

चुनाव के दिनों में पत्रकार आमतौर से धरना प्रदर्शन, रैली और भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर जाते हैं. ऐसे मौक़े पर उनके साथ छेड़छाड़ या हमले किए जाने की घटनाएं भी सामने आती रहती हैं. सीपीजे की रिपोर्ट के अनुसार अगस्त 2018 में हैदराबाद के अंदर तेलुगु भाषा के न्यूज़ चैनल ‘मोजो टीवी’ से जुड़े 2 पत्रकारों पर हमला किया गया था. यह हमला एक दक्षिणपंथी पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा किया गया था. इसी तरह दक्षिणपंथी पार्टियों के संभावित समर्थकों की ओर से ही एक लाइव शो के दौरान ‘टीवी9 मराठी’ चैनल के कई मीडियाकर्मियों पर भी हमला किया गया था.

राजनीतिक सभाओं और रैलियों के दौरान विभिन्न प्रकार के खतरों से बचने के लिए:

धरना प्रदर्शन

धरने प्रदर्शनों की रिपोर्टिंग करते समय संभावित खतरों से कैसे बचें?

आंसू गैस से निपटते समय संभावित खतरों को कैसे दूर करें

भारत में पत्रकार कई बार प्रदर्शनकारियों के हमलों का शिकार हो चुके हैं, इसलिए जब इस तरह की बर्बरता का सामना हो तो नीचे लिखी बातों को ध्यान में रखें.

शारीरिक सुरक्षा: विरोधी समुदाय में रिपोर्टिंग करते समय सुरक्षा का ख़्याल कैसे रखें?

पत्रकारों को अक्सर ऐसे इलाकों या समुदायों में रिपोर्टिंग करने की ज़रूरत पड़ती है जो मीडिया या बाहरी लोगों से दुश्मनी रखते हों या ऐसा तब हो सकता है जब किसी समुदाय को यह लगता हो कि मीडिया उनका सही प्रतिनिधित्व नहीं करता है या उनकी नकारात्मक छवि पेश करता है. चुनाव अभियान के दौरान पत्रकारों को मीडिया से दुश्मनी रखने वाले समुदायों के दरमियान लंबे समय तक काम करने की ज़रूरत पड़ सकती है.

इस प्रकार की आशंकाओं को कम करने के लिए

मानसिक सुरक्षा: न्यूज़रूम में ट्रॉमा की समस्या को कैसे हल करें?

ऐसी न्यूज़ रिपोर्ट और ऐसे हालात जो सदमे का कारण बनते हैं और जिसकी वजह से आपको उस सदमे के प्रभाव के बारे में सोचना चाहिए, निम्नलिखित हैं:

मैनेजमेंट को चाहिए कि ऐसे दिनों में अपने स्टाफ का मार्गदर्शन करे और देखभाल की जिम्मेदारी खुद पर भी महसूस करे. इस हवाले से निम्नलिखित बिंदुओं पर ग़ौर किया जाना चाहिए और अगर ज़रूरत हो तो उस पर अमल भी करना चाहिए. इन दिशा निर्देशों पर अमल करने का फैसला ज़्यादातर न्यूज़ स्टोरी या रिपोर्ट और हालात की तीव्रता पर निर्भर होता है.

मानसिक सुरक्षा: ट्रॉमा से संबंधित तनाव से कैसे निपटें?

ट्रॉमा के बाद जन्म लेने वाले तनाव (Post-tramatic stress disorder) को निरंतर बढ़ रही एक समस्या के तौर पर देखा जाता रहा है जिसका सामना उन पत्रकारों को करना पड़ता है जो तनाव से संबंधित घटनाओ की रिपोर्टिंग करते हैं.

यह समस्या उन मीडिया कर्मियों के साथ ज़्यादा होती है जो विवादित इलाकों में जाकर रिपोर्टिंग करते हैं या जब वह मौत या किसी ख़तरनाक स्थिति को बेहद करीब से देखते हैं. इसलिए यह बात आम तौर पर मानी जाती है कि वह पत्रकार जिन्हें इस प्रकार की कठिन या परेशान करने वाली न्यूज़ स्टोरीज का सामना करना पड़ता हो, पीटीएसबी अर्थात ट्रॉमा के बाद जन्म लेने वाले तनाव की स्थिति के अनुभव से गुजर सकते हैं. बदसलूकी या हिंसा से संबंधित न्यूज़ स्टोरी, अपराध, फौजदारी अदालत से संबंधित मुकदमे, डकैती की घटनाएं. ऐसी स्टोरीज़ जिनमें बड़े पैमाने पर जान का नुकसान हो, कार के हादसे, कोयले की खान का गिरना, इस तरह की घटनाओं की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों में तनाव की स्थिति पैदा होने की संभावनाएं मौजूद होती हैं. ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर बदसलूकी या ट्रोल का शिकार होने वाले लोग भी इस तरह के ट्रॉमा या तनाव की चपेट में होते हैं.

इंटरनेट पर लोगों के द्वारा बिना सेंसर किए मैटेरियल के बढ़ते रुझान ने एक नई डिजिटल फ्रंटलाइन को जन्म दिया है. अब यह माना जाता है कि मौत और दिल दहला देने वाले दृश्यों को देखने वाले पत्रकार और एडिटर तनाव की चपेट में होते हैं. इस अछूते या विभिन्न प्रकार के ट्रामा को दूसरों से प्राप्त एक विशेष घातक ट्रामा के तौर पर जाना जाता है.

सभी पत्रकारों के लिए यह समझना ज़रूरी है कि डरावनी घटनाएं या फुटेज को देखने के बाद ट्रामा का शिकार होना या तनाव में आ जाना एक प्राकृतिक और सामान्य मानवीय प्रतिक्रिया है. यह किसी प्रकार की कमी या कमजोरी नहीं है.

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अगर स्तिथि ज़्यादा असामान्य हो तो क्या करें?

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